बिहार: विपक्ष की तमाम कोशिशों के बाद भी आंदोलन से नहीं जुडे़ राज्य के किसान
दिल्ली की सीमा पर जारी किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार के विपक्षी दलों के नेता मानव श्रृंखला, ट्रैक्टर रैली, राजभवन मार्च, धरना और प्रदर्शन भले ही आयोजित कर चुके हैं, लेकिन इन आयोजनों से वो अब तक बिहार के किसानों को आंदोलन से जोड़ने में कामयाब नहीं हो सके हैं. बिहार के किसान आज भी आंदोलन से दूर हैं.
बिहार विधानसभा में विपक्षी दल के नेता तेजस्वी प्रताप यादव किसानों से आंदोलन में शामिल होने की अपील कर चुके हैं. यही नहीं दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी बिहार आकर यहां के किसानों को आंदोलन से जोड़ने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन अब तक यहां के किसान आंदोलन को लेकर मुखर नहीं हैं. कई क्षेत्र के किसान तो इस आंदेालन को जानते तक नहीं हैं.
अखिल भारतीय किसान महासभा के सचिव रामधार सिंह कहते हैं कि बिहार के किसानों में चेतना की कमी है. उन्होंने कहा कि आज भी यहां के किसान अपने उत्पाद औने-पौने दामों में बेच रहे हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में वे आंदोलन से नहीं जुड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि महासभा के लोग 10 फरवरी से 10 मार्च तक गांव-गांव जाकर पंचायत लगाएंगे और किसानों को जागृत करेंगे.
पिछले 30 जनवरी को राजद के आह्वान पर सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर केंद्र सरकार की तरफ से हाल में बनाए गए तीन कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर राज्य में मानव श्रृंखला आयोजित की गई थी. इस मानव श्रृंखला में भी राजनीतिक दल के नेता तो सड़कों पर नजर आए थे, लेकिन किसान नहीं बराबर सड़कों पर उतरे.
केंद्र सरकार के हाल में बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन से जुड़े संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे और यहां के किसानों से किसान आंदोलन में साथ देने की अपील की, इसके बावजूद भी यहां के किसान सड़कों पर नहीं उतरे.
कृषि कानूनों से उनको ज्यादा मतलब नहीं
बिहार में दाल उत्पादन के लिए चर्चित टाल क्षेत्र के किसान और टाल विकास समिति के संयोजक आंनद मुरारी कहते हैं कि यहां के किसान मुख्य रूप से पारंपरिक खेती करते हैं और कृषि कानूनों से उनको ज्यादा मतलब नहीं है.
इधर, पटना के समीप बिहटा के किसान राम प्रवेश राय बेबाक शब्दों में कहते हैं कि अभी कौन किसान होगा जो आंदोलन के लिए सडकों पर उतरेगा. उन्होंने कहा कि यहां के किसान खेतों में काम नहीं करेगें, तो साल भर खाएंगें क्या? उन्होंने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि सबको अपनी राजनीति चमकानी है और चमका रहे हैं.
बिहार में एपीएमसी एक्ट साल 2006 में ही समाप्त कर दिया गया है. इधर, सत्तापक्ष के नेता कहते रहे हैं कि बिहार के किसान राजग के साथ हैं. उन्हें मालूम है कि किसानों के साथ पहले क्या होता था? बिहार के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि केंद्र सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लिए ²ढसंकल्पित है और लगातार इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं. बिहार का कृषि मॉडल की प्रशंसा चारों तरफ की जा रही है. आज यहां जलवायु परिवर्तन को देखते हुए मौसम अनुकूल खेती की जा रही है.
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